Friday, March 30, 2007
A letter to Manisha Pandey
प्रिय मनी’ाा जी,आप जैसी विचारवान “ाख्स की यह राय जानकर दुख हुआ कि ब्लॉग बंजर धरती है और इसके जरिये सार्थक बहस की नहीं जा सकती है। यह जरूर है कि इंटरनेट और खास तौर पर ब्लॉग सूचना एवं संवाद का नया माध्यम है। हिन्दीभाf’ायों के लिये तो यह बिल्कुल ही अजनबी माध्यम है, लेकिन आने वाले समय में यही सूचना, संचार एवं संवाद का स”ाक्त माध्यम बनने वाला है। कई विकसित दे”ाों में ब्लाग ने वह रूतबा कायम कर लिया है जो हमारे दे”ा में बड़े अखबारों को ही नसीब है। यह नहीं ब्लॉग रचनाकारों को संवाददाता का दजाZ दिया जाने लगा है। सुनामी और मुंबई की 31 जुलाई की जानलेवा बारि”ा जैसे कई मौकों पर कई ब्लॉगों ने लोगों को राहत पहुंचाने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऐसे में ब्लॉग को निरर्थक एवं बंजर बताना सही नहीं है। मेरी राय में ब्लाग मौजूदा समय में संवाद एवं सूचना का सर्वाधिक लोकतांत्रिक एवं सही मायने में fद्वपक्षीय संवाद का सबसे कारगर एवं सबसे सस्ता एवं सुविधाजनक जरिया है। इसलिये मेरा अनुरोध है कि ब्लॉग के बारे में आप अपनी राय के बारे में पुनर्विचार करिये। ब्लॉग को बंजर बता कर आप अविना”ा जी जैसे समर्पित ब्लागरों की मेहनत को अपमानित कर रही हैं। आपकी दूसरी f”ाकायत यह है कि ब्लाग के जरिये गंभीर बहस नहीं होती और ऐसी बहस से किसी सत्य तक नहीं पहुंचा जा सकता। इस बारे में मैं यही कहना चाहुंगा कि आज जब पारस्परिक बहस और विम”ाZ के सारे दरवाजे एक के बाद एक करके बंद होते जा रहे हैं वैसे में ब्लॉग हमारे लिये बहस का एक नया दरवाजा उपलब्ध करवा रहा है। अब स्तरीय संवाद की बात है तो क्या दे”ा की सर्वोच्च पंचायत संसद और लोकतंत्र के चौथे प्रति’ठान मानी जाने वाली मीडिया में क्या स्वस्थ एवं स्तरीय बहस, संवाद या वाद-विवाद हो रहे हैं। नहीं न। इसका मतलब हम इन्हें बेकार तो नहीं बता सकते। दूसरे ब्लाग जैसे माध्यम ने तो अभी अपना आकार भी ग्रहण नहीं किया है। यह तो अभी नवजात है। अभी तो इसका फलना-फूलना बाकि है। अगर अभी से आप जैसे लोग ब्लॉग को गलियाने लगेंगे तो क्या होगा। ब्लाग ने आज हर आदमी चाहे वह धनी हो या नहीं, उसे अपनी बात कहने का मौका उपल्ाब्ध करा दिया है। एक समय था कहानी, कविता या लेख छपवाने लोहे के चने चबाने के समान था। संपादक अपने को ई”वर से कम नहीं मानते थे। लेकिन ब्लॉग ने हर व्यक्ति को संपादक बना दिया है। अब हर व्यक्ति थोड़ा समय एवं थोड़े पैसे लगा कर अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिये स्वतंत्र है। यह ब्लॉग का ही करामात है। मुझे तो खु”ाी है कि हिन्दी भा’ाी पत्रकार एवं लेखक ब्लॉग की महत्ता समझ कर इस दि”ाा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगे हैं अन्यथा एक समय तो अंग्रेजीदां लोगों का ही इस पर कब्जा था। हम हिन्दी भा’ाी लोगों का यह फर्ज है कि इसे आंदोलन का स्वरूप दें और इसे सामाजिक चेतना का एक नया माध्यम बनायें। एक बात और। मॉनीटर की तरह से आकर अच्छी खासी बहस को समाप्त करा देने की आपकी आदत से भी मुझे आपत्ति है। हमें घर-मोहल्लों, दफ्तरों, मीडिया और सड़क से संसद तक नयी किस्म की साडि़यों, लिपिfस्टक, क्रिकेट, इमरान हा”ामी, नाग-नागिन, बटूकनाथ, राखी सावंत, गडढे में प्रिंस, पुनर्जन्म, लेटेस्ट मोबाइल टोन्स, रिलायंस स्टोर आदि- आदि के बारे होने वाली निरर्थक बहस से तो कोई गुरेज नहीं है लेकिन दो मूल्यों एवं पीfढ़यों को प्रतिनिधित्व करने वाली दो महान हस्तियों पर बहस करने से आपत्ति क्यों है। अभिसार ने जो बात कह दी अगर उसे मान लेने के बजाय अपनी राय रखने में कौन सा पहाड़ टूट पड़ता है। क्या आप वैसे समाज का निर्माण करना चाहती हैं जहां सभी लोग एक ही तरह की भा’ाा बोलें, एक तरह के विचार रखें और एक तरह से सोचें। क्या ऐसा समाज रहने लायक होगा। मेरी राय में किसी भी बहस को तब तक चलने देना चाहिये जब तक कि वह स्वत पूर्ण नहीं हो जाये। फूल को पूरी तरह से प्रस्फुटित होने देने से पहले ही उसे मसल देना अप्राकृतिक एवं अलोकतांत्रिक है। कम से ब्लाग जैसे लोकतांत्रिक माध्यम के साथ ऐसा अलोकतांत्रिक तरीका नहीं अपनाया जाना चाहिये। अब कुछ उटपटांग लोग तो कुछ न कुछ कहेंगे ही क्योंकि लोगों का काम है कहना। लेकिन कुछ अच्छे लोग भी तो अच्छी बातें कहेंगे। उटपटांग एवं बकवास लोगों के भय से अच्छी बातों को सामने आने से क्यों बंचित किया जाये। मेरी राय में इधर-उधर की बातों पर बहस करने या सुनने तो अच्छा है कि ब्लॉग के जरिये अपने विचारों का आदान -प्रदान करें। बेहतर तो यह होता कि आमने - सामने बैठकर विचारों का आदान प्रदान हो लेकिन अब न तो समय है न ही ऐसी सुविधा। बहस को चलते देने में क्या बुराई है। “ाायद मेरी टिप्पणी पर सबसे कड़ी प्रतिक्रिया हुई। यहां तक कि एक सज्जन ने मुझ पर व्यक्तिगत आरोप ही लगा बैठे, इसके बाद भी मैं कहुंगा कि यह बहस जारी रहे - न केवल यह बहस बल्कि अन्य बहस भी। जिन्हें बहस में नहीं पड़ना है वे तो नि”चय ही कहानी, कविता एवं उपन्यास पढ़ेगे। यह जरूर है कि बहस को और सार्थक बनाया जाये, लेकिन सार्थक बहस नहीं हो पा रही हो इस कारण से संवाद या बहस ही बंद करा दी जाये, यह कहां की बुfद्धमानी है। यह तो वही बात हुयी कि अगर किसी समाज को बेहतर नहीं बनाया जा सके तो उसे समाप्त ही कर दिया जाये। आपको याद रखना चाहिये कि बहस एवं संवाद से ही समाज बनता है, बहस का नि’ोध एक तरह की ताना”ााही है। बहस पर प्रतिबंध अलोकतांत्रिक है। दु:ख है कि अविना”ा जी ने भी इस ताना”ााही को हम पर लाद दिया। विनोद विप्लव9868793203
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