Saturday, September 12, 2009

खबरिया पार्टी

खबरिया पार्टी
विनोद विप्लव
कुछ पार्टियां सत्ता में बने रहना जानती हैं और कुछ पार्टियां खबरों में बने रहना जानती हैं, जबकि कुछ पार्टियां न सत्ता में बने रहना जानती हैं और न ही खबरों में। पहली तरह की पार्टी का जन्म सत्ता में रहने के लिये ही हुआ है। जब वह सत्ता में नहीं रहती है, तब जल बिन मछली की तरह तड़पने लगती है। लेकिन दूसरी तरह की पार्टी का जन्म खबरों में बने रहने के लिये हुआ है। सत्ता से बाहर रहने पर उसे कोई संकट नहीं होता है। उसे दिक्कत तब होती है, जब वह खबरों से बाहर हो जाती है। वह अगर किसी तरह सत्ता में आ भी जाये, लेकिन किसी कारण से खबरों से बाहर हो जाये तो उसे बेचैनी होने लगती है। खबरों में वापसी के लिये उसे अपनी सरकार गिराने में भी कोई गुरेज नहीं होता है।
सत्ता वाली पार्टी को सत्ता में रहने का और दूसरी वाली पार्टी को खबरों में बने रहने के कारण खबरों में रहने का महारत हासिल हो गया है। दूसरी वाली पार्टी सत्ता में हो या नहीं हो, खबरों में केवल वही होती है। ऐसा लगता है कि भारत में उसके अलावा कोई और पार्टी है ही नहीं। इसके नेताओं को भी पार्टी को हमेशा खबरों में बनाये रखने की चिंता होती है और इस कारण वे पार्टी तथा एक दूसरे की ऐसी-तैसी करने में लगे रहते हैं, क्योंकि उन्हें पता होता है कि पार्टी की जितनी भद्द पिटेगी, जितनी फजीहत होगी, वह उतनी ही अधिक खबरों में रहेगी जो कि पार्टी और उसके नेताओं की मूल जरूरत है।
इस पार्टी के नेताओं को यह भले ही पता नहीं हो कि पार्टी को सत्ता में कैसे लाया जाता है और सत्ता में कैसे बनाये रखा जाता है लेकिन उन्हें यह भली-भांति पता है कि पार्टी को खबरों में कैसे लाया जाता है और खबरों में कैसे बनाये रखा जाता है। उन्हें पता होता है कि खबरों में बने रहने के लिये किस महापुरुष पर लिखना चाहिये और किस पर नहीं लिखना चाहिये।
इस पार्टी का देश के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान है। इसी पार्टी के कारण ही लोग कंधार, स्विस बैंक और जिन्ना से लेकर पीएसी जैसे नीरस एवं गंभीर विषयों के बारे में जागरूक होते रहे हैं। अगर यह पार्टी नही होती तो न जाने कितने चैनल और अखबार बंद हो गये होते और कितने पत्रकार बेरोजगार। कितने पत्रकारों को खबरों के लिये फिर से भुतहा हवेलियों, श्मशान घाटों, कब्रिस्तानों, गड्ढों, और नाग-नागिनों के बिलों में चक्कर लगाने पड़ते।

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